रेगिस्थान में पिशाचीनी का आतंक/#bhootpret/Evil Power In Desert/Horror Stories/Real Horror Stories

भूत और चुड़ैल की कहानियां तो हम लोग बचपन से सुनते आ रहे हैं परंतु उनमें से कुछ ही सच्ची कहानियां होती थी जबकि कुछ केवल मनगढ़त कहानियां मात्र होती थी।

आज की कहानी हैं राजस्थान में पाकिस्तान सीमा से सटे रेगिस्तानी क्षेत्र के एक छोटे से गांव में रहने वाले 80 वर्षीय किशोरलाल जी की, क्या हुआ था किशोरलाल जी के साथ उस रात रेगिस्थान में ??
किशोर लाल जी पाकिस्तान से सटे राजस्थान के  रेगिस्तानी क्षेत्र जैसलमेर के एक छोटे से  गांव के रहने वाले हैं यह घटना उनके साथ तब हुई थी जब उनकी उम्र 8 या 9 साल हुआ करती थी।

Evil Power In Desert

 किशोर लाल जी एक बार अपने दादा और दादी के साथ अपनी ऊंट गाड़ी पर  रेगिस्तान में सफर कर रहे थे, तब उनके साथ एक ऐसी घटना हुई जो उनकी उम्र बीतने के बाद भी आज तक उनकी स्मृतियों में वैसी की वैसी बनी हुई है। किशोर लाल जी एक जमींदार परिवार से ताल्लुक रखते हैं। इनके दादा जी अपने क्षेत्र के बहुत ही जाने पहचाने व्यक्ति थे, जिनका पंचायतों के फैसलों में भी आना जाना होता था। किशोर लाल जी के पिताजी अपने पिता का ही जमींदारी के काम में हाथ बंटाते थे और साथ ही साथ ब्याज का काम भी करते थे।
 किशोर लाल जी का अपने दादा दादी के साथ अनन्य प्रेम था। यह बताते हैं कि वह अपने दादा के साथ ही बचपन में सोते थे और उनके दादा भी उनके सभी चचेरे भाई बहनों में सबसे ज्यादा प्रेम इन्हे ही करते थे।
अब आगे की कहानी खुद किशोर लाल जी के दृष्टिकोण से जानिए,
 यह बात है 1949 के आसपास की महीना था सावन का, रक्षाबंधन का त्यौहार नजदीक आ रखा था और इस बार मेरी दादी जी के भाई अभी कुछ दिन पहले ही मेरे घर पर आ कर गए थे और उन्होंने मेरी दादी जी से बहुत ही जोर लगाकर यह बात कही थी कि उनको इस बार राखी के त्यौहार पर उन्हें राखी बांधने उनके घर पर आना ही होगा,
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 दादी ने भी भाई के प्रेम के वशीभूत होकर हां कर दी।
 राखी के त्यौहार के 2 दिन पहले मेरे दादाजी एक दिन दादी से कहते हैं कि आज शाम को तैयार रहना हम तुम्हारे पीहर के लिए निकलेंगे फिर रक्षाबंधन के ऊपर राखी बांध के अगले दिन वापस घर के लिए निकल लेंगे,
 2 दिन इसलिए पहले जाने के लिए उचित समझा क्योंकि रेगिस्तानी क्षेत्र में सफर बहुत लंबा हो जाता है और उनका पीहर भी उनके गांव से थोड़ा दूर ही था।
रेगिस्तान के अंदर सफर का एकमात्र साधन केवल एक ही होता था जिसके ऊपर सवार होकर लोग एक जगह से दूसरी जगह पर आवागमन करते थे।

Who Was That In That Horrible Night In Desert

 दोपहर को जब मुझे यह बात परिवार के अन्य लोगों से पता चली तो मैंने दादी जी से कहा कि मैं भी आपके साथ ही इस बार आपके मायके चलूंगा, में मां ने जब ये बात वहीं आस पास काम करते हुए सुनी तो उन्होंने मुझे मना किया, परंतु मैंने भी जिद कर ली थी की आज मैं भी दादा दादी के साथ जाऊंगा।
मुझे दादा दादी के साथ जाने की जिद्द देखकर पिताजी ने थोड़ा गुस्सा किया परंतु फिर दादाजी के कहने पर मान गए क्योंकि उनके पिताजी भी तो मेरे साथ जा रहे थे मैं कौन सा अकेला जा रहा था।
 शाम के समय चाय पीने के बाद में दादा जी ने ऊंट को गाड़ी से जोड़कर तैयार किया ओर में और दादी गाड़ी के अंदर बैठ गए।
मुझे आज भी ऊंट से ही सफर करना ज्यादा पसंद हैं क्योंकि मुझे इसकी ही आदत हैं। दादाजी, दादी और में हमारी ऊंटगाड़ी में बैठकर घर से दादी के पीहर जाने के लिए निकल पड़े।
सफर बहुत लम्बा था वो हमे निकले घर से लगभग 2 से 3 घंटे बीत चुके थे, हम अपनी मंजिल के रास्ते पर बड़े जा रहे थे। रेगिस्तान में मौसम का कोई भरोसा नहीं कब मौसम बदल जाए और धूल भरी आंधियां चलने लगे, ये धूल भरी आंधियां जब चलती हैं न तो इंसान की देखने की क्षमता बिल्कुल कम हो जाती है।
आंधियां जोर शोर से चल रही थी और हम अपनी मंजिल की ओर बढ़े जा रहे थे। तभी कुछ दूर चलने के बाद में हमें किसी की आवाज सुनाई दी जब हमने थोड़ी दूरी पर देखा तो वहां एक औरत खड़ी थी और वह हमे रुकने के लिए इशारा कर रही थी। राजस्थान के लोगों की आदत ही होती हैं की आहट वह किसी अनजान जगह पर भी हो और उनसे कोई सहायता मांग ले तो वे अपने सामर्थ्य के अनुसार सहायता करने का प्रयत्न अवश्य करते हैं। जब इस तूफान के समय में किसी औरत को अकेले रेगिस्तान में परेशान होते देखा तो  दादी ने कहा इस समय पर यह अकेली औरत शायद रास्ता भटक गई होगी अगर इसे सहायता चाहिए तो हमें करनी चाहिए।
दादाजी भी दादी की बातो से सहमत थे।
 दादाजी ने उस औरत के पास में हमारी ऊंट गाड़ी को रोका और उससे पूछा कि क्या बात हुई आप इस समय पर यहां क्या कर रही हो?? 
 उस औरत ने बताया कि वह पास ही के गांव में जा रही है जहां उसका ससुराल है, तूफान आने के कारण रास्ता भटक गई थी जिसके कारण से आगे जाने का रास्ता समझ में नहीं आ रहा है।
 मेरे दादा जी ने जब उसकी परेशानी जानी तो उसकी सहायता करने का सोचा और उससे उसके गांव का नाम पूछा ताकि उसे वहां तक पहुंचा सके वरना इतनी रात में अकेली औरत के साथ कोई भी दुर्घटना हो सकती हैं ये मेरे दादाजी जानते थे। 
दादाजी ने उसे ऊंट गाड़ी में बैठने के लिए कहा, जब वह औरत हमारी ऊंट गाड़ी में आ कर बैठी तो मैंने ध्यान से देखा कि वह एक अधेड़ उम्र की औरत थी और उसने परंपरागत राजस्थानी वेशभूषा पहन रखी थी।
उसके हमारे साथ सफर में शामिल होने के बाद हम आगे बढ़ते रहे परंतु तूफान अभी भी थोड़ी थोड़ी देर में हमें परेशान कर रहा था। रास्ता, रेगिस्तान में किस समय पर दिखाई नहीं देता यह पता ही नहीं चल पाता है क्योंकि तूफानों के कारण मिट्टी इतनी इधर से उधर हो जाती है कि जो रास्ते पहले बने भी होते हैं उन पर भी मिट्टी आने के कारण भ्रम की स्थिति पैदा हो जाती है l। रेगिस्तान में सफर करते समय अगर हमारे पास पानी नहीं है तो हमारी हालत खराब होना निश्चित है, क्योंकि रेगिस्तान में चलते समय आपको प्यास कभी भी लग सकती है और इस भरे पूरे रेगिस्तान में दूर-दूर तक पानी का मिलना बहुत ही मुश्किल काम है।
 अब हम चारों हमारी ऊंट गाड़ी के अंदर बैठे हुए थे और हमें चलते हुए करीबन 3 घंटे और बीत चुके थे।
 रात बहुत ज्यादा गहरा चुकी थी और रात के सन्नाटे में जोर से चलती हवाओं का शोर मौसम को और सुहावना एवं ठंडा बना रहा था।

Sand Storms In Desert In Night

जब आंधियां थोड़ी कम हुई और आसमान के अंदर तारे दिखाई देने लगे तो दादा जी ने आसमान में तारों को देखकर बताया कि लगभग आधी रात हो चुकी है और अब हमें थोड़ी देर रुक कर खाना खा कर आगे बढ़ना चाहिए।
उस जगह से चलने के बाद थोड़ी दूरी के ऊपर एक झोपड़ी बनी हुई थी जो देखने से लग रहा था कि किसी किसान ने या फिर किसी सेठ ने पानी की प्याऊ और बैठने को व्यवस्था कर रखी हैं। जब हम अंदर गए तो हमने देखा की इस रेगिस्तान में भी उस झोपडी के अंदर बैठने के लिए चारपाई और पीने के लिए मटके में ठंडा पानी रखा हुआ था।
हम लोग झोंपड़ी के अंदर आए पानी पिया और अब खाना खाने की तैयारी करने लगे। दादी जी ने पहले से जो खाना हम घर से बांध कर लाए थे उसे निकाल लिया और सब को परोस दिया। हमारे साथ में आई उस औरत को भी दादी जी ने खाना परोस दिया और खाना खाने को कहा परंतु उसने मना कर दिया, फिर दादी जी ने जिद्द की कि इस रेगिस्तान के अंदर पता नही तुम कब से चल रही हो,और क्या पता कब खाना खा कर निकली हो या खाया भी न हो तो तुम्हें कुछ खा लेना चाहिए l। 
मेरी दादी जी की बात सुनकर अंत में उस औरत को भी मानना ही पड़ा और वह हमारे साथ खाना खाने के लिए मान गई। हम सब ने खाना खाया और अब हम वहां से आगे हमारी मंजिल के लिए निकल गए।
 थोड़ी दूरी पर चलने के बाद में मुझे थोड़ी बदबू का एहसास हुआ। मैंने यह बात मेरे दादाजी को कही तो उन्होंने कहा कि आस-पास में कोई ऊंट मरा हुआ होगा जिसे कोई रेगिस्तान में फेंक गया होगा इसलिए यह बदबू आ रही है परंतु वहां से काफी दूर आकर जाने के बाद भी मुझे वह बदबू अभी भी आ रही थी, रेगिस्तान में जहां दूर दूर तक कोई आबादी नही होती तो किसी भी मारे हुए पशु की बदबू का दूर तक आना थोड़ा स्वाभाविक सा तो था परन्तु मेरा मन यह मानने को तैयार नही था क्योंकि यह बदबू मुझे ऐसा लग रहा था की मेरे बहुत पास से आ रही हैं।

Badboo Us Chudail Se Aa Rahi Thi

जब मैंने थोड़ा ध्यान से देखा तो मैंने महसूस किया कि यह बदबू तो हमारी गाड़ी के अंदर बैठी उस औरत से ही आ रही थी। मैंने थोड़ा और ध्यान लगाकर उसकी तरफ देखने की कोशिश की तो मुझे पता लगा कि उसके हाव-भाव अब कुछ बदलने लगे हैं और आसपास के क्षेत्र से सियारों के रोने की आवाजें भी अब आने लगी थी, थोड़ी दूरी से हमें कुत्तों के रोने की आवाज भी सुनाई दे रही थी।
 अब मेरा ध्यान केवल उस औरत के ऊपर था। मैं उस गाड़ी के अंदर मेरी दादी के गोद में सर रखकर लेटा हुआ था परंतु मैंने मेरी आंखें थोड़ी सी खोल रखी थी और मेरा ध्यान पूरा उस औरत के ऊपर था वह कुछ अजीब सी हरकतें करने लगी थी। मौसम फिर से बदलने लगा था थोड़ी थोड़ी आंधी अब फिर से शुरू हो गई थी आंधियों के दोबारा शुरू होते ही दादाजी ने आसमान की तरफ देखा और तारों की स्थिति से समय का अंदाज लगाया फिर हमें बताया कि अब रात के करीबन 3:00 से 3:30 का समय हो रखा है।
 हमें अभी और बहुत आगे चलना है आंधियां फिर से हमारा रास्ता थोड़ा बहुत भटका रही थी, परंतु दादाजी इन रास्तों से पूरी तरह वाकिफ थे रेगिस्तान उनका घर था इसलिए वह मंजिल की तरफ बढ़े जा रहे थे।
 जब आंधियां तेज हो गई तो उस औरत का पल्लू उसके चेहरे से थोड़ा सा हट गया था और मेरी नजर अचानक से जब उसके चेहरे पर पड़ी तो मैं बहुत डर गया क्योंकि पहली नजर में देखने से ऐसा लग रहा था कि उसका चेहरा जला हुआ है और उसके शरीर से कुछ पानी जैसा पदार्थ टपक रहा है।
 मैंने आवाज लगाकर अपनी दादी जी और दादा जी को यह बात बताने की कोशिश की परंतु मैं कुछ भी बोल नहीं पाया।
 मेरी आवाज निकल ही नहीं पा रही थी और अब उस औरत की नजरें मेरे ऊपर आ चुकी थी, जब मेरी उससे नजरें मिली तो उसकी अंगारों सी दहकती आंखों को देख कर मैं बहुत ज्यादा डर गया और मुझे उसके बाद कोई होश नहीं रहा।
जब मेरी आंख खुली तू मेरे सामने कुछ लोग खड़े थे और हमारी ऊंट गाड़ी एक से एक तरफ बंधी हुई थी परंतु मेरे दादा जी और दादी जी कहीं दिखाई नहीं दे रहे थे।
मैंने जब मेरे आस-पास मौजूद कुछ लोगों से मेरे दादा दादी के बारे में पूछा था पता चला की उस जगह पर मेरे अलावा और कोई भी उन लोगो को नही मिला।
मैंने उन्हें बताया कि मैं अपने दादा दादी जी के साथ मेरे दादी जी के पीहर रक्षाबंधन के लिए जा रहा था। हमारे साथ एक औरत और थी जो हमें रास्ते में मिली थी और उसे पास ही के गांव में जाना था।
 हम आराम से अपने रास्ते से जा रहे थे कि अचानक से मुझे उस औरत का भयानक चेहरा दिखाई दिया और बहुत ही बदबू महसूस हुई जिसके बाद मुझे नींद आ गई और मुझे उसके आगे का कुछ नहीं पता।
मेरी बात को सुनकर सब सोचने लगे तब वहां पर खड़े एक बुजुर्ग ने कहा कि तुम्हारे गले में हनुमान जी का एक लॉकेट है जिसमें हनुमान जी की मूर्ति बनी हुई है जिसके कारण तुम बच गए वरना हो सकता है, तुम्हारे दादा दादी की तरह तुम भी यहां से गायब हो जाते।
 उन लोगों ने मुझसे मेरे पिताजी का नाम पूछा और मेरे गांव का नाम पूछा, जब मैंने उन्हें सब बता दिया तो उन लोगों ने मेरे गांव में किसी को यह संदेश देने के लिए भेज दिया।

Pishachini Killed His Grandparents

 मेरे पिताजी और गांव के कुछ अन्य लोग करीबन 4:00  से 5 घंटे के बाद में उस जगह पर पहुंचे। वहां के आम लोगों से बातचीत करने पर पता चला कि उस क्षेत्र के अंदर एक पीशाचीनी का साया है जो पिछले कई सालों से यहां के आसपास के गांव में घूमता रहता है और उसने कई लोगों को अपना शिकार बनाया है।
 उसके शिकार किए गए लोगों की लाश अक्सर पास ही के बीहड़ में मिलती है। उन सब लोगो ने उस बीहड़ में जाकर  मेरे दादा दादी को तलाश करने का निर्णय लिया और कुछ लोगो के साथ वहां से निकल गए।
 मेरे पिताजी को उम्मीद थी की क्या पता शायद मेरे दादा दादी जिंदा ही और लोग झूट बोल रहे हो।
जब मेरे पिताजी बाकी लोगों के साथ उस बीहड़ के अंदर पहुंचे तो उन लोगों ने पाया कि मेरे दादा दादी के शव बीहड़ के एक कोने में पड़े हुए थे। उनकी गर्दन पर दांतो से कांटे जाने  के निशान थे।
गर्दन पर दांतो के निशान देख कर वहां खड़े सभी लोगों ने उन लाशों को पिशाचीनी का ही शिकार बताया। मेरे पिताजी बहुत ज्यादा मायूस हो चुके थे क्योंकि उन्होंने अपना संरक्षक आज खो दिया था। मुझे जब यह बात पता चली तो मैं बहुत ज्यादा रोने लगा क्योंकि मुझे यह उम्मीद नहीं थी कि रात को जिनके साथ में हंस खेल के अपनी मंजिल की ओर बढ़ रहा था।l, आज वह मेरे साथ नहीं रहे।
जब पिताजी ने वहां खड़े लोगों से उस पिशाचिनी के बारे में या उससे संबंधित पुरानी कुछ घटनाओं के बारे में जानना चाहा तो पता चला कि आज से करीबन 20 से 30 साल पहले इस जगह से करीब 10 किलोमीटर दूर किसी सेठ ने एक पानी की प्याऊ का निर्माण करवाया था, जहां पर हर समय ठंडा पानी और लोगों के आराम करने की व्यवस्था थी।
 एक रात एक औरत उस रास्ते से जा रही थी और वह रेगिस्तान में तूफान के कारण अपने घर का रास्ता भटक गई थी तभी कुछ डाकुओं ने उसका रास्ता रोक लिया और उसको झोपड़ी में ले जाकर विवश तरीके से उसका बलात्कार किया। बलात्कार करने के बाद में उन लोगों ने उस औरत को जिंदा जला दिया, कहते हैं कि उस औरत की हत्या के करीबन 3 साल के बाद में जिन डाकुओं ने उसके साथ बलात्कार और उसकी हत्या की थी उन सब की लाश संदिग्ध अवस्था में रेगिस्तान के आसपास के क्षेत्र में ही मिली।
 मेरे पिताजी ने बताया कि यह लोकेट मेरे दादा जी का ही था जो उन्होंने मेरी बुरी आत्माओं से सुरक्षा के लिए मेरे गले में डाल दिया था। आज इसी हनुमान जी के लॉकेट ने मेरी जान बचाई थी।
 उस समय तो मैं बच्चा था तो मुझे नहीं पता था कि यह कौन से भगवान है परंतु बाद में जब मैं बड़ा हुआ और थोड़ा समझदार हुआ तो मुझे पता चला कि जो मूर्ति मेरे गले के अंदर थी वह राजस्थान के सालासर जी बालाजी की थी।
मुझे आज भी जब वह भयानक चेहरा कभी सपने में दिखाई देता है तो मैं सिहर जाता हूं मैंने मेरे दादा दादी को एक ही झटके में खो दिया था जिसका गम मुझे आज तक है और मैं आज तक भी उस पिशाचीनी के बारे में पूर्ण रूप से नहीं जान पाया हूं यह एक रहस्य ही है कि क्या वह पिशाचिनी वही औरत थी जिसकी हत्या हुई थी या कोई और शक्ति थी जो us विवान क्षेत्र के अंदर भटक रही थी।
आज की कहानी बस इतना ही आगे और ऐसी ही सच्ची घटनाओं के बारे में जानने के लिए हमें हमारे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर फॉलो करें।
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