The Phantom Disguise: A Tale of Chhalawe

Mohan – The Humble Villager

मोहन भवरपुर गाँव का रहने वाला एक साधारण मगर मेहनती इंसान था। उसकी उम्र लगभग पैंतीस साल की थी। सांवला रंग, पतली कद-काठी, आँखों में ईमानदारी की चमक और चेहरे पर परिश्रम की लकीरें। वह बचपन से ही खेतों में अपने पिता के साथ काम करता आया था। खेती उसकी रोज़ी-रोटी थी और मिट्टी से उसका खास लगाव था।

मोहन का परिवार बड़ा था, लेकिन वह सबसे शांत और समझदार माना जाता था। उसका स्वभाव विनम्र था, मगर एक आदत उसे दूसरों से अलग बनाती थी — उसे गाँव की पुरानी कहानियों और भूत-प्रेत की बातों में बेहद दिलचस्पी थी। वह अक्सर गाँव के बुज़ुर्गों से भूतिया किस्से सुना करता और फिर देर रात अकेले खेतों में बैठकर उन पर सोचता रहता।

The Silent Night Walk

एक रात की बात है — आषाढ़ का महीना था, बारिश थम चुकी थी लेकिन गीली मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू अब भी फैली हुई थी। मोहन देर रात अपने खेतों से लौट रहा था। रात के लगभग साढ़े दस बज रहे थे। चारों तरफ घना अंधेरा, बस एक छोटी सी टॉर्च जो वो हमेशा अपने साथ रखता था, उसका रास्ता दिखा रही थी।

गाँव के बाहर एक छोटा सा जंगल पड़ता था, जिसे पार करके ही खेत आते थे। मोहन रोज़ इसी रास्ते से आता-जाता था, मगर उस रात कुछ अजीब सा महसूस हो रहा था। पेड़ जैसे सरसराहट नहीं कर रहे थे, और झींगुरों की आवाज़ भी कुछ मंद थी। एक गहरी चुप्पी हर तरफ छाई थी।

A Familiar Face in the Dark

जैसे ही वह जंगल के किनारे वाले मोड़ तक पहुँचा, उसकी नज़र सामने से आती एक परछाई पर पड़ी। धीरे-धीरे वह आकृति पास आई और जब पूरी तरह रोशनी में आई तो मोहन चौंक गया — वह उसका चचेरा भाई रमेश था।

“अरे रमेश! तू यहाँ? तू तो शहर में था ना?” मोहन ने पूछा।

रमेश ने धीरे से मुस्कुराया, लेकिन उसकी मुस्कान में कुछ अजीब सा था। आँखें खाली थीं, जैसे उनमें कोई भावना नहीं थी। आवाज़ में भी एक ठंडापन था।

“चल, मोहन… मुझे तुझसे कुछ जरूरी बात करनी है… तालाब के पास चल,” रमेश बोला।

मोहन को थोड़ी हैरानी हुई, लेकिन भाई को देखकर वह संकोच में आ गया। रमेश अगर इतने समय बाद आया है, तो कोई गंभीर बात होगी — यही सोचकर वह साथ चल पड़ा।

The Lake of Shadows

भवरपुर के बाहर एक पुराना तालाब था, जिसे लोग ‘छलावे वाला तालाब’ कहते थे। कई सालों से उस तालाब के आस-पास अजीब घटनाएँ होती आई थीं। लोग कहते थे कि वहाँ एक ऐसा आत्मा रहती है जो किसी जान-पहचान वाले का रूप लेकर इंसानों को बुलाती है, फिर उन्हें मार देती है।

मोहन को भी ये सब याद आया, लेकिन रमेश के कहने पर वह आगे बढ़ता गया। रास्ता सुनसान था, सिर्फ उनके कदमों की आवाज़ थी। कुछ दूर जाने के बाद रमेश ने बोलना बंद कर दिया और बस चुपचाप चलने लगा। उसका चलने का तरीका भी कुछ बदल गया था, जैसे वो ज़मीन को छू ही नहीं रहा था।

Strange Behaviour and Ominous Signs

तालाब पास आने लगा था। हवा अब और भी भारी महसूस हो रही थी। पेड़ एकदम शांत खड़े थे, जैसे किसी तूफान से पहले की खामोशी हो। मोहन ने रमेश से पूछा, “तू कुछ बोलता क्यों नहीं?”

रमेश ने अचानक पीछे मुड़कर देखा — उसकी आँखें अब लाल हो चुकी थीं, और चेहरा पूरी तरह बदल गया था। वो इंसान नहीं लग रहा था।

The Confrontation

मोहन पीछे हटने की कोशिश करने लगा, लेकिन उसके पैरों ने मानो साथ देना बंद कर दिया था। तभी रमेश की शक्ल वाली वो आकृति अचानक हवा में ऊपर उठने लगी। उसका शरीर लंबा, काला और धुँधला हो गया। वह अब एक छलावा बन चुका था।

“तू रमेश नहीं है!” मोहन चीखा।

छलावे ने अपनी डरावनी आवाज़ में कहा, “अब तुझे समझ आया… लेकिन अब बहुत देर हो चुकी है।”

Fight for Survival

मोहन ने खुद को छुड़ाने की कोशिश की और पास की एक लकड़ी उठा ली। उसने छलावे पर हमला किया, लेकिन वो हर बार बच निकलता। छलावा हँस रहा था — एक ऐसी हँसी जो कानों को चीरती थी।

तालाब की लहरें तेज़ हो गईं, जैसे खुद पानी भी उस भयावह लड़ाई का साक्षी हो। मोहन ने अपने दिल की सारी ताक़त लगा दी, हर प्रहार में जीवन की अंतिम आशा थी। लेकिन छलावा हर वार को नष्ट कर देता और फिर से विकराल रूप में सामने आ जाता।

The Last Breath

अंत में छलावे ने मोहन को ज़मीन पर गिरा दिया और उसकी छाती पर बैठ गया। उसकी लम्बी उंगलियाँ अब नाखून जैसी नुकीली हो चुकी थीं। उसने धीरे-धीरे मोहन की छाती चीर दी। मोहन की चीखें अंधेरे में गूंज उठीं — मगर सुनने वाला कोई नहीं था।

एक पल में सब शांत हो गया। मोहन की आँखें खुली रह गईं, और चेहरे पर वही भयावह डर छपा था जो छलावे को देख कर किसी के भी चेहरे पर आ सकता था।

Aftermath: A Village in Mourning

अगली सुबह गाँव का एक चरवाहा तालाब के पास से गुजर रहा था। उसने देखा कि वहाँ कोई पड़ा है। जब पास जाकर देखा, तो वो मोहन की लाश थी — आँखें खुली, चेहरा काला, और छाती पर नाखूनों के गहरे निशान।

गाँव में शोक फैल गया। सबका विश्वास फिर से उसी पुरानी मान्यता पर लौट आया — “छलावे असली होते हैं।”

The Legend Lives On

भवरपुर गाँव में आज भी कोई रात को तालाब की तरफ नहीं जाता। वो रास्ता अब वीरान रहता है। बच्चे भी उस ओर जाने से डरते हैं, और बुज़ुर्गों की कहानियाँ अब और भी सच लगती हैं।

मोहन की मौत के बाद गाँव के मंदिर में हर साल विशेष पूजा होती है ताकि उसकी आत्मा को शांति मिले — और छलावे को फिर से उठने से रोका जा सके।

लेकिन कभी-कभी रात के तीसरे पहर कुछ लोगों ने देखा है — तालाब के किनारे कोई परछाई टहलती है, और कोई दूर से अपने किसी प्रियजन की आवाज़ लगाता है।

शायद वो छलावा अब भी वहीं है…


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