हर बार की तरह हम आपके लिए ले के आए हैं एक ओर सच्ची कहानी जो आपको ये सोचने पर मजबूर कर देगी की क्या कोई आत्मा कभी किसी की सहायता भी कर सकती है??
Kya Koi Aatma Kisi Ki Help Kar Sakti Hai??
राजस्थान क्षेत्रफल की दृष्टि से देश का सबसे बड़ा राज्य हैं। राजस्थान की धरती पर एक से बढ़ कर एक महावीर ने जन्म लिया हैं। इस धरती पट राणा सांगा जैसे योद्धा ने जन्म लिया था जिन्होंने शरीर पर अस्सी घाव लगे होने के बाद भी युद्ध किया था। ये धरा उस महाराणा प्रताप की जन्मभूमि हैं जिन्होंने जब तक जिंदा रहे मुगलों की नाक में दम कर के रखा था।
राजस्थान में वीरों के अलावा कई बड़े व्यापारियों ने भी जन्म लिया हैं जिनमे से आज कुछ पूरे संसार में अपनी व्यापारिक सुख बुझ का परिणाम दिखा रहे हैं।
चरित्रों के नाम और शहर का नाम बदल दिया गया हैं और कहानी कुछ इस प्रकार हैं कि
राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में एक शहर हैं जिसे फतेहपुर के नाम से जाना जाता हैं। इस शहर को इसकी हवेलियों और भीति चित्रों के लिए भी जाना जाता हैं। शेखावाटी को राजस्थान की ओपन आर्ट गैलरी भी कहा जाता है इन चित्रों के कारण। इसी शहर में एक हलवाई हुआ करते थे जिनका नाम रामचंद्र जी था। उनकी शहर के मुख्य बाजार में एक दुकान हुआ करती थी जिस में वो मिठाई बनाकर अपना जीवन यापन कर रहे थे।
रामचंद्र जी के परिवार में उनकी दो बेटियां एक बेटा और पत्नी थी। बेटियो को उम्र अब शादी लायक हो चुकी थी और रामचंद्र जी को इसकी चिंता सताए जा रही थी की वो अपनी बेटियो को ब्याह के लिए पेसो की व्यवस्था केसे करेगा।
ये घटना करीबन 1972 के आस पास की हैं और उस समय पर बेटी का ब्याह करना बाप के लिए एक मुश्किल काम ही होता था अगर उनको आर्थिक स्तिथि मजबूत न हो तो।
रामचंद्र जी की दुकान अवश्य थी परंतु ईमानदारी ओर शुद्ध मिठाइयों के कारण उनकी बचत बहुत कम थी। उनका मानना था की अगर हम ग्राहक को मिलावट कर के मिठाई देंगे तो ऊपर वाले को जाके क्या मुंह दिखाऊंगा की मेने कितने लोगो के साथ धोका किया??
Kya Hua Jab Aatma Unke Saamne Aayi??
रामचंद्र जी के दिन ऐसे ही गुजर रहे थे वो रोज अलसुबह दुकान पर जाते ओर अपना ताजा मिठाई बनाते और फिर रात तक काम करते दुकान पर। मेहनत भी ज्यादा कर रहे थे परंतु जितना फायदा होना चाहिए वो हो नही पा रहा था और वो अपनी बेटी को शादी के लिए परेशान हो रहे थे।
हर एक पिता को अपनी बेटी को शादी धूम धाम से करने का शोक होता हैं। रामचंद्र जी भी सबसे बड़े दान कन्यादान कर के अपने आपको धन्य करना चाहते थे। बेटी के लिए लड़का और ससुराल वाले तो अच्छे मिल गए थे परंतु अब शादी भी तो करनी थी और उसकी कसक उनके चेहरे पर दिख जाती थी।
रोज की तरह एक दिन वो सुबह से अपने काम में व्यस्त थे और काम करते करते उन्हें रात को बहुत देर हो चुकी थी। रामचंद्र जी दुकान को बंद कर के घर ही जाने वाले थे की उन्हें एक लंबा सा इंसान अपनी दुकान की ओर आता हुआ दिखाई दिया। रामचंद्र जी को दूर से देखने से ही पता चल गया था की ये कोई इंसान तो नही हैं। जिंदगी का तजुर्बा और घटनाए इंसान को सब कुछ सिखा देती हैं। रामचंद्र जी एक धैर्यवान इंसान थे। जब वो इंसान उनकी दुकान के पास आया और उनसे जलेबी के बारे में पूछा, रामचंद्र जी उसको एक क्षण देखकर बोले, रुकिए अभी देता हूं,
रामचंद्र जी वैसे तो दुकान बंद कर के घर जाने वाले थे परंतु अब इसने उनसे मिठाई मांग ली तो वो मना नहीं कर पाए।
रामचंद्र जी ने खुद को संभाला और दुकानें अंदर गए और उस पारालोकिक शक्ति के लिए जलेबी ले कर आए और उसे दे दी।
Kon Tha Vo Safed Kapdo Me??
उस सफेद पोशाक वाले व्यक्ति ने रामचंद्र जी से जलेबी ले और उनको बदले में सोने की कुछ मोहरे देने लगे, रामचंद्र जी ने ये देखकर को ये उसे सोने की मुहर दे रहे हैं जलेबियों के बदले में तो उन्होंने मना कर दिया,
“में अपने की मोहरे नही ले सकता आप ऐसे ही खा लीजिए”
जब रामचंद्र जी ने उस सफेद पोशाक वाले से ये कहा तो जो उत्तर में उस व्यक्ति ने जो जवाब दिया उसे सुनकर एक बार तो रामचंद्र जी हलवाई भी गहरी सोच में पड़ गए की आखिर इसे मेरे बारे में इतना केसे पता।
उस सफेद पोशाक वाले व्यक्ति ने उनसे कहा “बेटी की शादी बिना पैसे के केसे करोगे, ये कोई भीख नहीं हैं तुम्हारी मेहनत का फल हैं,तुम एक ईमानदार इंसान हो इसे रखो और अपनी बेटी को शादी धूम धाम से करो”
रामचंद्र जी ये सुनकर अचंभित होकर उसे देखने लगे, और सोचने लगे कि में ये सोने की मुहर लू या नही।
सफेद पोशाक वाले व्यक्ति ने रामचंद्र जी को वो मुहर दी और उसे कहा कि मेरे और तुम्हारे मिलने की बात किसी को मत बताना, ये बात बस अपने तक सीमित रखना।
रामचंद्र जी वो सोने की मुहर लेकर अपने घर को चले गए और बेटी को शादी के लिए थोड़ी चिंता उनकी कम हो गई।
Bhoot Ne Help Kese Ki??
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रामचंद्र जी उस रात चैन की नींद सोए और अगले दिन सुबह आराम से उठे और उनके चेहरे पर एक अलग सी ही खुशी थी। वो जल्दी से अपने नित्यकर्म से निवृत होकर बेटी की होने वाले ससुराल के निकल पड़े, शादी की तारीख निश्चित करने।
रामचंद्र जी अपनी बेटी के ससुराल जाकर उसका शादी की तारीख निश्चित कर के आ गए परंतु अब उन्हें आते आते दोपहर बाद का समय हो चुका था। घर आकर उन्होंने अपनी पत्नी से जल्दी खाना लगाने को कहा और हाथ मुंह धोकर खाना खाने बैठ गए।।
रामचंद्र जी दुकान पर पहुंचे तब तक उन्हें शाम के 5 बज चुके थे, रामचंद्र जी मिठाई के साथ साथ अपनी दुकान पर चाय भी बनाते थे जिसके कारण उनके पास शाम को लोगो को बैठक सी लग जाती थी।
आज जब उन्होंने दुकान नही खोली और शाम को लेट आए तो उनके संगी साथी भी उनसे पूछने के लिए आ गए की “भाई रामचंद्र क्या बात हुई?? आज सुबह से दुकान पर आए ही नही?? कहीं कोई परेशानी तो नहीं??”
ये सुनकर रामचंद्र जी थोड़ा खुशी से बोले ” नही भाई परेशानी वाली कोई बात नहीं हैं, आज बच्ची को शादी की तारीख पक्की कर के आया हूं,इसलिए देर हो गई, बैठो चाय बनाता हूं”
चाय के साथ बातो का दौर चल पड़ा, ओर दुकान पर काम करते करते आज फिर से रामचंद्र जी को देर हों गई थी। वे दुकान बंद करने ही वाले थे की उन्हें कोई चीर परिचित सी आवाज अपने कानो में सुनाई पड़ी “जलेबी हैं”??
रामचंद्र जी ने पीछे मुड़ कर देखा तो वो वही कल वाला इंसान था जिसने उसे सोने की मुहर दी थी। वे उस सफेद कपड़े वाले लंबे से इंसान से बोले हां हैं, और अंदर जा के जलेबी ले के आकर उसे से दी।
उस सफेद पोशाक वाले इंसान ने फिर से एक सोने की मुहर निकली और हलवाई को दे दी, वो उसे देखकर खुशी से फूले नही समाए।
Kya Vo Bhoot Roj Aata Tha??
हलवाई को उस व्यक्ति ने कहां की में रोज़ इसी समय पर इधर से निकलता हूं अगर तुम रोज मुझे जलेबी दे दो तो अच्छा हैं, परंतु मेरे बारे में और अपने बीच को बातचीत किसी को मत बताना नही तो फिर में नहीं आऊंगा,
रामचंद्र जी ने हां कर दी।
रामचंद्र जी का अब रोज का काम हो गया था की वो रात को देर तक दुकान पर रहते और जब वो सफेद पोशाक वाला इंसान उनसे जलेबी ले के चला जाता तब वो घर आते। जलेबियों के बदले में वो इंसान उन्हें रोज एक सोने की मुहर देके जाता था। रामचंद्र जी ने कुछ ही महीनों में अपने पुराने से घर को नया बनवा लिया और गांव के पास में ही एक खेत और खरीद लिया और अब वो अपनी बेटी की शादी करने वाले थे।
बेटी की शादी से कुछ दिनो पहले रामचंद्र जी ने अपनी दुकान को भी तोड़ कर नई बनवा ली और रंग रोगन करवा दिया।
अपने घर और दुकान दोनो को रामचंद्र जी नया बनवा लिया था और अब बेटी की शादी भी पास में आ गई थी तो वो उसके दायजे का समान इक्कठा करने लगे।
रामचंद्र जी के रोज दुकान से देरी से घर आने के कारण अब तो उनके पत्नी और बच्चे भी उन्हें कहने लगे कि, अब तो हमारा जीवन बहुत अच्छे से चल रहा हैं और दुकान भी बहुत अच्छी चल रही हैं तो आप समय से घर वापिस आ जाया करो ना??
रामचंद्र जी ने उनकी बात को एक कान से सुना और दूसरे से निकाल दिया।
Kya Aatma Insan Se Dosti Kar Sakti Hai??
रामचंद्र जी की दुकान और उनका नाम अब केवल उनके शहर में ही नही बाहर भी चलने लगा था। उनकी व्यवहारकुशलता के कारण और उनकी मिठाइयों को शुद्धता के कारण उनका नाम अब पूरे राजस्थान और देश में फैलने लगा था। रामचंद्र जी ने अपने व्यापार को और बढ़ा लिया था। अपने शहर के अलावा भी और दुकान खोल ली थी उन्होंने और कारीगर रखकर अपने व्यापार को चला रहे थे परंतु खुद उसी पुराण दुकान पर रहते थे। रात को बाकी सारे कामगारों को घर भेजने के बाद भी देर तक बैठे रहते थे।
रामचंद्र जी का उस सफेद पोशाक वाले इंसान से दोस्ताना सा व्यवहार हो गया था, वो रोज रात को जब वह आता तो उसको जलेबी देकर उसके साथ बैठकर थोड़ी देर बाते करते।
एक दिन रामचंद्र जी ने उस सफेद पोशाक वाले इंसान से कहा भी कि आपकी ही वजह से में आज इतनी अच्छी और मजबूत स्तिथि में हूं नही में तो अपने जीवन को बस काट रहा था, अगर आप मेरी बेटी की शादी में आकर उसे आशीर्वाद दे तो मुझे बहुत खुशी होगी,
सफेद पोशाक वाले लंबे व्यक्ति ने कुछ सोचकर बोला ठीक हैं में आऊंगा पर तुम्हारे अलावा किसी को दिखूंगा नहीं और तुम्हारी बेटी को आशीर्वाद देकर वहां से चला जाऊंगा और तुम भी ये बात अपने तक ही सीमित रखना।
धीरे धीरे दिन बीतते गए और रामचंद्र जी की बेटी की शादी का दिन भी आ गया। रामचंद्र जी आज बहुत खुस थे, उन्होंने अपनी बेटी की शादी के लिए सर्वोत्तम इंतजाम किए थे।
शादी के अंदर हजारों की संख्या में लोग आए थे और सबके स्वागत सत्कार की उच्च कोटि को व्यवथा थी परंतु रामचंद्र जी की आंखे तो किसी खास मेहमान को तलाश रही थीं जो अभी तक शादी में पहुंचा नही था।
रामचंद्र जी थोड़ी थोड़ी देर में मुख्य द्वार पर जाकर देखते परंतु मेहमान को न पाकर निराश होकर वापिस आ जाते, रिश्तेदारों और उनकी पत्नी ने उनसे पूछा भी कि आप इतनी बेसब्री से किसका इंतजार कर रहे हो?? एक खास दोस्त का ये कहकर वो बात को टाल देते।
Kya Bhoot Unki Beti Ki Shadi Me Aaya??
शादी की रस्में चल रही थी, और घर में सब खुशी से फूले नही समा रहे थें। इन्ही खुश होने वालो में से कुछ लोग ऐसे भी थे जो अंदर ही अंदर रामचंद्र जी बहुत जलते थे की आज उनके पास इतनी संपत्ति केसे हो गई और अपनी बेटी की शादी इतनी भव्यता से केसे कर पर रहा हैं?? कुछ महीनो पहले तक तो उसके पास 2 रोटी का इंतजाम करने तक के पेसे नही होते थे परंतु आज देखो राजस्थान के मशहूर रईसों में इनका नाम गिना जाता हैं।
आलोचकों का होना स्वाभाविक सा हैं आज के समय में, अगर किसी लोग आपके सच्चे प्रसंसक होते हैं तो कुछ आलोचक भी होते ही हैं।
रामचंद्र जी शादी के कार्यक्रमों से समय निकाल कर घर के मुख्य द्वार तक पहुंचे तो उसे वही चीर परिचित आवाज सुनाई पड़ी “जलेबी हैं??”
रामचंद्र अपने उस खास दोस्त की आवाज को सुनकर बहुत खुस हुए ओर हैं कह कर उन्हे घर में आने का न्योता दिया।
वो सफेद पोशाक वाला शख्स घर में आया और बेटी को आशीर्वाद दिया और घर के मुख्य द्वार तक वापिस आ गया।
रामचंद्र जी को उसने बेटी की शादी के लिए उपहार में एक सोने का हार जिसमे हीरो की कारीगरी की गई थी, दिया।
रामचंद्र जी ने उपहार उनसे लिया और उन्हें विदा दी और आने के लिए आभार व्यक्त किया, उस सफेद पोशाक वाले इंसान ने उनसे फिर उसी बात का जिक्र किया की अपने बीच को बात का जिक्र भूल कर भी कभी किसी से मत करना।
बेटी की शादी को धूमधाम से निपटकर रामचंद्र जी बहुत खुश थे। उनकी ये खुशी उनसे ईर्ष्या रखने वालो से देखी नही जा रही थीं। वो लोग उस राज को जानना चाहते थे की आखिर कैसे एक आम इंसान इतने कम समय में इतने पैसे वाला बन गया। लोगो की ये आदत होती हैं को वो अपने साथ वालो को अपने से आगे बढ़ता हुआ नही देख पाते हैं।
ऐसे ही कुछ दोस्त रामचद्र जी ने भी पाल रखे थे जो बिलकुल आस्तीन के सांप की तरह ही थे। रामचंद्र जी से अक्सर वो इस बारे में पूछ ही लेते थे की आखिर केसे इतने कम समय में उन्होंने इतना धन कमा लिया?? आखिर इसका राज क्या हैं??
Kya Hua Jab Bhoot Ki Sachhai Pata Chali??
जब इंसान के पास पैसा आ जाता हैं न तो उसको हो सकता हैं कुछ न कुछ गलत आदत लग जाए ओर ऐसी ही एक गलत आदत अब रामचंद्र जी को लग चुकी थी। वो अपने मित्रो के साथ बैठकर चिलम पीने लगे थे। रोज शाम को लगभग सारे दोस्तों के साथ मिलकर वो चिलम पिया करते थे, प्रायः वो चिलम में तंबाखू का ही प्रयोग करते थे परंतु कुछ दोस्त उनके ऐसे भी थे जो उन्हें चिलम में तंबाखू की जगह गांजा मिलाकर पिलाने लगे थे। रामचंद्र जी को इस बात का कभी पता नही लग पाया कि वो तम्बाखू के वहम में नशा भी करने लगे हैं।
एक दिन उनके कुछ शातिर दोस्तो ने तम्बाखु में गांजा की मात्रा ज्यादा कर दी और रामचंद्र जी को पिला दी। रामचंद्र जी चिलम पीकर थोड़ा नशे में हो गए थे और उनके दोस्त इसी बात का फायदा उठाने वाले थे। आज वो उस राज को जानने वाले थे जो इतने सालो से उन्होंने छिपा के रखा था।
नशे के असर में उनके दोस्तो ने रामचंद्र जी से उस सफेद पोशाक वाले व्यक्ति के बारे में सब कुछ पता कर लिया और रामचंद्र जी ने नशे में उन्हें उसके बारे में सब कुछ बता दिया।
उनके दोस्तो ने देर रात को उन्हें नशे की हालत में ही घर पर छोर आए थे। सुबह जब रामचंद्र जी उठकर तैयार होकर दुकान पर जाने लगे थे तो उन्हें रास्ते में लोग उन्हें देखकर खुसर फुसर करते नजर आए। रामचंद्र जी थोड़ा सा ये देखकर सकपका गए फिर उन्हे याद आया कि रात को नशे में उन्होंने क्या गलती कर दी।
पूरे शहर में ये बात जंगल की आग की तरह फेल गई थी की रामचंद्र जी को एक आत्मा ने सहायता की थी।
रामचंद्र जी दुकान पर उस दिन देर रात तक उस सफेद पोशाक वाले इंसान का इंतजार करते रहे परंतु वो आज नही आया, पूरी रात वो दुकान पर ही बैठे रहे परंतु उनका वो खास दोस्त आ नही पाया उस दिन।
दूसरे दिन सुबह वो घर पहुंचे और अपनी किस्मत पर रोने लगे, उन्होंने उस सफेद कपड़े वाले इंसान के बारे में अपने परिवार को बताया की केसे वो इतने सालो से उसके पास मिठाई लेने आता था और रोज रात को उसे एक सोने की मुहर दे के जाता था।
नशे ने की गई एक गलती के कारण वो आज पछता रहे थे। ऐसे ही कुछ दिन बीत गए और रामचंद्र जी रोज रात अपने उस खास दोस्त का इंतजार कारते परंतु अब वो नही आता था।
एक दिन गांव के एक बुजुर्ग पंडित जी रामचंद्र जी से मिलने पहुंचे और उनसे उसके बारे में जानने को कोशिश की, रामचंद्र जी ने उसकी वेशभूषा और पोशाक वगेरह के बारे में जानकर उनसे कहा कि वो एक शहीद(इस्लाम में अच्छी आत्मा)
था जिसने उसकी सहायता की थी।
थोड़े दिन बाद एक दिन रामचंद्र जी अपने घर में अपने कमरे में मृत मिले। वो रात को खाना खाकर आराम से सोए थे परंतु अगले दिन सुबह मृत मिले।
जो घटना इन हलवाई के साथ घटी थी ऐसी ही घटनाएं ही सकता हैं की किसी और के साथ भी घटी हो।
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