सच्ची भुतहा घटनाओं के क्रम में आज हम आपके लिए लेकर आए हैं एक ओर नई कहानी जिसे सुनकर आप नदी के पास में जाने से भी डरोगे।
आज की कहानी हैं 1960 के दशक की,ओर जिन्होंने इस घटना को अपनी आंखों से होते हुए देखा हैं। आबादी के हिसाब से और देश के केंद्र की राजनीति में प्रमुख स्थान रखने वाले राज्य उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गांव की कहानी हैं।
इस कहानी को उन्हीं बुजुर्ग के दृष्टिकोण से जानिए की आखिर ये घटनाक्रम हुआ केसे था।
रामसिंह, यही नाम हैं मेरा और ये कहानी हैं आज से करीबन 60 साल से ज्यादा पुरानी, यह कहानी मेरे और मेरे बचपन के एक दोस्त के साथ घटी थी।
सुखराम और मेरा घर गांव में पास पास में ही था और हम दोनो बचपन से एक साथ खेलते कूदते आए थे। सुखराम और में एक बहुत ही अच्छा भाईचारे वाला रिश्ता रखते थे। हम दोनो दोस्तो में भाईयो जैसा प्रेम था।
हमारे गांव से कुछ ही दूरी पर एक नदी बहती थी और हमारे खेत में नदी के किनारे के आस पास ही थे। मेरे दादाजी एक पहलवान थे और वो हनुमान जी को अपना इष्ट देव मानते थे तो हमारे घर में हनुमान जी की पूजा पाठ बचपन से ही मेने होते देखा था और दादाजी के साथ रहकर मेने भी पूरी हनुमान चालीसा बचपन से याद कर ली थीं और में रोज सुबह उठकर नहा धोकर हनुमान चालीसा का पाठ करता था।
सुखराम और में रोज अपने खेतों में साथ में ही जाया करते थे और कभी कभार हम एक दूसरे की खेती में सहायता भी किया करते थे।
ये गेंहू की कटाई का समय चल रहा था और हमारी फसल पक चुकी थी। में अपने परिवार के साथ अपने खेत में गेंहू की कटाई कर चुका था और इसमें मेरी सहायता मेरे दोस्त सुखराम ने भी की थी।
में और सुखराम हमेशा नदी में नहाने जाया करते थे, और ये हमारी बचपन से आदत थी जब से हम थोड़ा बहुत समझदार हुए थे तब से हम दोनो अपने दोस्तो के साथ नहाने जाया करते थे नदी पर।
मेने और मेरे दोस्तो ने तैरना उसी नदी से सीखा था।
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हमारे खेत में फसल की कटाई होने के करीबन 5 से 7 दिन बाद सुखराम के खेतो में भी फसल पक चुकी थी। एक शाम सुखराम ने मेरे से इस बारे में जिक्र किया की किसी दिन रात में उसकी फसल की कटाई में सहायता करु उसकी,
मेने उसे आज रात से फसल की कटाई के लिए आने का बोल दिया और में अपने घर आ गया।
ये शाम का समय था और जब में घर में आया तो मेने देखा की आज घर में खीर और हलवा बना हैं जब मां से पूछा की आज ऐसा क्या खास हैं की घर में खीर और हलवा बना हैं क्योंकि हम इतने अमीर तो थे नहीं की रोज रोज खीर और हलवा खा सके बना के घर में।
मां ने बताया की आज अमावस्या हैं और ये अमावस्या को पितृ देवो को भोग लगाने के लिए बनाया गया हैं।
पूजा पाठ पूरी होने के बाद में मेने भी जी भर कर खाना खाया और पिताजी को बताया की आज मुझे सुखराम के साथ खेत में फसल को कटाई करने जाना हैं।
पिताजी ने भी बिना कोई न नुकुर किए हां कर दी और में सुखराम के घर के लिए निकल पड़ा।
उसके घर पहुंच कर मेने देखा की वो तो अभी खाना खा रहा हैं तो में उसके पिताजी के साथ बैठ गया और बाते करने लगा। गांव के बड़े बुजुर्ग थे तो बाते भी कुछ ज्ञान की चली थोड़ी बहुत देर तक। इतने में सुखराम ने खाना खा लिया और हम दोनो खेत के लिए निकल पड़ें।
रात का अंधेरा चारो तरफ छाया हुआ था और एक अजीब सी खामोशी वातावरण में चारो तरफ फैली हुई थी। सुखराम ओर में पगडंडी के सहारे सहारे सुखराम का खेत जो नदी के पास था उसमे जा पहुंचे।
3 एकड़ के आस पास की जमीन में फसल की कटाई अभी बाकी थी तो में और सुखराम दोनो फसल की कटाई करने लगे। हमे करीबन 2 घंटे से ज्यादा का समय हो चुका था फसल की कटाई करते हुए ओर हमने एक अच्छे खासे एरिया में फसल की कटाई कर दी थी।
रात का समय था तो मौसम भी थोड़ा ठंडा था जिससे हमे काम करने में कोई दिक्कत नहीं हो रही थी। धीरे धीरे कर के हमने करीबन 1 एकड़ से ज्यादा जमीन पर फसल की कटाई कर दी थी।
मुझे चाय पीने की मन में हुई क्योंकि काम करते हुए बहुत ज्यादा समय हो चुका था, और खेत मे काम करते हुए थकान होना भी आम बात हैं। मेने सुखराम से चाय के लिए कहा तो वह खेत में बनी कोटड़ी(एक झोंपड़ी जिसमे
खेती के सारे सामान और चाय बनाने का सामान रखता था)
से चाय बनाने का सामान निकाल के ले आया। मेने खेत में बने अस्थाई चूल्हे में आग जलाई और चाय का पतीला उस पर रख दिया। सुखराम खेत के दूसरी ओर पेशाब करने चला गया था।
मेने हाथ मुंह धो के चाय बनाना शुरू किया परंतु मुझे तभी कहीं से सियारो के रोने की आवाज आने लगी, ओर सियारो की आवाज के साथ साथ कुछ और अजीब सी आवाज आने लगी।
परंतु रात में खेतो में काम करते हुए अब मुझे इन सबकी आदत हो चुकी थी, और में जब मुझे कभी डर लगता तो में मन ही मन ने हनुमान चालीसा का पाठ करने लगता, ओर आज भी जब ये आवाजे सुन के मेरा मन भयभीत होने लगा तो में तुरंत हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा।
थोड़ी देर तक ऐसे ही बीच बीच में आवाजे आती रही और मेने भी हनुमान चालीसा पढ़ते हुए चाय बना लो इतनी देर में। चाय बन चुकी थी परंतु सुखराम अभी तक वापिस नही आया था तो मेने उसे जोर से आवाज लगाई, सुखिया आज भाई चाय बन गई, तभी मुझे उत्तर में सुखराम को आवाज के साथ एक आवाज और आई जिसमे भी वह व्यक्ति यही कह रहा था की आया, मेरे मन में एक सवाल सा उठा परंतु फिर ये सोचकर की इतनी रात में इस सुनसान इलाके में अपने खेतो में फसलों की कटाई करने कोई आया हुआ होगा हमारी तरह और उसने गलती से आवाज लगा दी होगी।
सुखराम भी अब तक आ चुका था, ओर मेने उसे चाय का ग्लास दे दिया। हम दोनो साथ में बैठकर चाय पीने लगे और सुखराम ने साथ में चिलम बना ली क्योंकि अब रात में उसके पिताजी का तो खेत में आने का सवाल ही नहीं था।
में और सुखराम चिलम और चाय साथ साथ पीने लगे और बाते करने लगे, तभी सुखराम ने मुझे बताया की मुझे आज कुछ अजीब सी आवाज सुनाई दी अभी खेत के दूसरे हिस्से की तरफ जब में वहां पेशाब करने गया हुआ था। मेने भी उसे मेरे साथ हुई घटना के बारे में बताया ओर हम दोनो हंस कर फिर से चाय और चिलम ने व्यस्त हो गए।
चाय और चिलम खत्म कर के में और सुखराम वापिस गेंहू की कटाई करने में लग गए थे, क्योंकि रात में जितना ज्यादा फसल की कटाई हम कर सकते थे उतना ही जल्दी फसल कटेगी क्योंकि दिन में तो धूप के कारण पूरे दिन काम नही कर सकते परंतु रात में मौसम ठंडा होने कारण फसल की कटाई का काम ज्यादा मुश्किल नहीं लगता था।
हमे काफी समय हो चुका था काम करते हुए ओर अब हमे काम करते हुए आलस आ चुका था, हम दोनो ने वहीं खेत में बैठकर चिलम पीना शुरु कर दिया। जब खुले नीले आसमान में मेने देखा तो ये बहुत ही सुंदर नजारा था। टूटते तारे और आकाश गंगा एक नयनाभिराम दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे जिसे जितना देखो उतना ही आंखे सुकून पाएगी।
तारो की स्तिथि देखकर समय का पता लगा की रात के करीबन 2 बजे के आस पास का समय हो चुका था। हवाएं चल रही थी थोड़ी ठंडी ठंडी जो, हमारा आलस और ज्यादा बढ़ा रही थी।
चिलम खत्म कर के हम दोनो वापिस फसल की कटाई में व्यस्त हो गए, परंतु अभी भी आलस हमारा साथ नही छोर रहा था।
में और सुखराम धीरे धीर काम करते रहे आलस के साथ भी परंतु फिर भी थोड़ी देर में वापिस वही हालत हो गई। आज काफी समय बाद रात के समय काम कर रहे थे तो आलस आना भी लाजमी सा था और ये बात में और सुखराम दोनो ही जानते थे।
Aadhi Rat Me Nadi Me Nahane Kyo Gaye??
सुखराम ओर में जब आलस और नींद के आगे लाचार से होने लगे तो फिर सुखराम ने कहा चल यार नदी में नहा के आते हैं थोड़ी देर, इससे हमारा आलस भी उतर जायेगा और हम काम भी थोड़ा और ज्यादा कर लेंगे।
में और वो दोनो नदी की तरफ चल पड़े, वहां पहुंच कर हमने अपने कपड़े उतारे और नदी में नहाने के लिए कूद गए।
रात के मौसम में इन खामोसियों में नदी का ठंडा पानी एक अलग सा ही सुकून दे रहा था। नदी के पानी के बहने की मधुर आवाज हम अपने कानो से साफ साफ सुन पा रहे थे।
वैसे तो इस नदी में हम लगभग हर रोज ही नहाते थे, परंतु आज रात के समय में नदी में नहाना एक अलग ही मजा दे रहा था, में आज से पहले कभी रात में नदी में नहाया नही था।
सुखराम ओर में पानी के अंदर गौता लगाते और वापिस ऊपर सतह पर आ जाते, तभी अचानक से सुखराम ने बाहर आकर कहा कि भाई तू पानी में गोता लगाते समय मेरे पैरो को क्यों खेंच रहा था, मेने कहा नहीं भाई मेने ऐसा तो कुछ नही किया।
सुखराम को ऐसे लगा की उसके पैरो को पानी के अंदर किसी ने पकड़ा,
सुखराम उसे नजरंदाज कर के वापिस पानी के अंदर गौता लगाने कूद पड़ा, वापिस बाहर आकर उसने वही बात कही,
हम दोनो ऐसे ही पानी में थोड़ी देर तक नहाते रहे, और सुखराम ने मुझे कई बार पानी के अंदर शैतानी न करने के लिए कहा परंतु मुझे लगा की वो मजाक कर रहा हैं।
Rat Me Pani Ke Andar Kon Tha??
मैं वापिस पानी में गोता लगाने लगा, मुझे पानी में नहाने में बड़ा मजा आ रहा था, सुखराम मेरे पीछे की तरफ नदी में नहा रहा था और मैं तैरते तैरते उसे थोड़ा आगे आ गया, में वापिस दुबारा उसकी तरफ जाने लगा तो मेने देखा की मेरे पास से कोई पानी में तेजी से तैर के गया हैं परंतु में चेहरा नहीं देख पाया था।
मेने देखा की सुखराम तो आगे नदी में तैर रहा था फिर ये कोन था जो मेरे पास से तैरते हुए निकला, में भी इस सोच में पड़ गया तभी मुझे किसी के चीखने की आवाज सुनाई दी नदी के किनारों की तरफ से तो मेने उस और देखने का प्रयत्न किया को उधार आखिर हैं कोन इतनी रात में जो चीख रहा हैं और अभी जब हम नहाने नदी पर आ रहे थे तो हमने आस पास में रास्ते पर या खेतो में किसी को भी नही देखा फिर ये कोन था जो इतनी जोर से चीख रहा था।
Pani Ke Andar Kese Pakda Tairte Insan Ko Bhoot Ne??
मेरा मन भयभीत सा हो गया था और में सुखराम की तरफ जाने लगा तैर कर और ये कहने की हम अब यहां से चलते हैं, परंतु तभी में क्या देखता हूं की सुखराम तो वहां तैरता हुआ नही दिख रहा हैं परंतु जिस जगह वो तैर रहा था वहां पानी में हलचल जरूर हैं, अमावस्या की उस काली सन्नाटेदार रात में बहते पानी में हलचल खुद ही बयां हो रही थी, मेने सुखराम को आवाज लगाई की बाहर आजा, क्योंकि कई बार वो पानी में अंदर रुक भी जाता था उसे तैरने का अच्छा खासा ज्ञान था और वो अपने आपको पानी में काफी देर तक अंदर रख सकता था।
मेरे आवाज लगाने के बाद भी जब वो बाहर नही निकला तो मेने खुद ही पानी के अंदर गोता लगाया और देखने की कोशिश की आखिर गया कहां सुखराम??
परंतु सुखराम पानी के अंदर भी नही दिख रहा था, में अब थोड़ा डर सा गया था, में पानी की सतह पर आया और देखने की कोशिश की की आखिर वो गया कहां, तभी मुझे मेरे से थोड़ी दूरी पर पानी में हलचल दिखी, में उस तरफ गया तो देखा कि सुखराम था और उसे कोई दूसरी तरफ पानी के अंदर से खींच रहा था। मेने उसके हाथो को पकड़ने की कोशिश की उसको पानी से निकलने के लिए परंतु वो चीज उसे पानी में अंदर ही अंदर खींच रही थी और मेरे से दूर ले के जाए का रही थी, मेने चिल्ला कर आस पास से लोगो को भी बुलाने को कोशिश की परंतु कोई भी हमारी आवाज को सुन नही पा रहा था।
Kya Bhoot Ne Pani Ke Andar Hi Use Mar Diya??
मैने सुखराम को पकड़ कर खींचने की बहुत कोशिश की परंतु वो चीज उसे जबरदस्ती कर बलपूर्वक अपनी ओर खींच के ले जाती और अजीब सी आवाज निकालती।
अंधेरा होने के कारण में उस को सही से देख तो नहीं पाया परंतु पानी के अंदर उसके शरीर को देख कर इंसान ही लग रहा था। पानी के अंदर इतनी गति से किसी दूसरे इंसान को पकड़ कर खींच के ले जाना किसी भी गोताखोर के लिए भी मुश्किल हैं फिर ये कोन था जो मेरे दोस्त को मेरे सामने से ले गया।
पानी को सतह पर अब खून भी आने लगा था और सुखराम के छटपटाने के कारण पानी में भी हलचल हो रही थी परंतु जब तक में कुछ समझ पाता वो शक्ति और सुखराम दोनो पानी के अंदर ही अंदर मेरी नजरो से ओझल हो चुके थे।
में बहुत ज्यादा डर गया था में पानी से बाहर निकला और गांव की ओर दौड़ के भागा चिल्लाते हुए, मेरी आवाज सुनकर गांव के कुछ लोग उठ भी गए थे।
Ganv Ke Logo Ne Nadi Me Kya Dekha??
गांव के कुछ लोग भाग के नदी की तरफ गए, गांव में हो हल्ला मच जाने से मेरे पिताजी और सुखराम के परिवार वाले भी घर से बाहर आ गए थे। मेने जब सबको सुखराम के बारे में बताया तो उसके परिवार वाले फुट फूट कर विलाप करने लगे।
में भी अपनी पिताजी और गांव के बाकी लोगो के साथ वापिस नदी पर गया, कुछ गांव के लोग जो बहुत ही अच्छे गोताखोर थे वो पानी के अंदर कूदे और देखने लगे, परंतु काफी समय बीत जाने के बाद भी सुखराम का कुछ पता नही चल पाया।
मेरी आंखों में मेरे सबसे अजीज दोस्त से आखिरी मुलाकात बार बार एक फिल्म की तरह घूम रही थी।
दूसरे दिन भी सुखराम को नदी के अंदर काफी देर तक खोजा परंतु आस पास के क्षेत्रों में भी सुखराम के बारे में कोई जानकारी नहीं मिली।
गांव के कुछ बड़े बुजुर्गो ने बताया की नदी के अंदर किसी आत्मा का साया पिछले कई सालों से हैं। इस तरह की कई घटनाएं पहले भी गांव में हो चुकी हैं। रात के अंधेरे में ये बुरी शक्तियां और ज्यादा ताकतवर हो जाती हैं।
जो भी बात हो परंतु उस मनहूस रात के बाद कभी भी मेरा दोस्त सुखराम हमे नही मिला।
मेरी बस आपसे यही सलाह हैं की रात के अंदर किसी भी जल स्त्रोत में नहाने से बचे, क्या पता किस जगह कोन सी बुरी शक्ति बैठी हो।